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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2645
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।

उत्तर -

नामकरण - अनेक निबन्ध संग्रहों तथा कहानी संग्रहों के नाम संग्रह की प्रथम रचना या अंतिम रचना के आधार पर रखे गये हैं। द्विवेदी जी ने निबन्ध संग्रह 'अशोक के फूल का नाम संकलन के प्रथम निबन्ध के आधार पर रखा है, यद्यपि लेखक या संग्रह- कर्त्ता सम्पादक के लिए संग्रह का नामकरण करने के लिए कोई नियम या बाध्यता नहीं है, तथापि निबन्ध संग्रह का वही नामकरण सार्थक होता है जिसमें निम्नोक्त गुण हों -

(1) नामकरण उस निबन्ध के नाम पर किया जाए जो लेखक या संग्रह - कर्त्ता को सर्वश्रेष्ठ लगे।
(2) जो नाम संग्रह के अन्य निबन्धों को कहीं स्पर्श करता हो।
( 3 ) जो नाम सभी रचनाओं को एकसूत्रता में बाँधने में समर्थ हो।
(4) जो प्रतीकात्मक हो।
(5) जो कवित्तपूर्ण हो, जिज्ञासा उत्पन्न करने वाला हो।

'अशोक के फूल' निबन्ध संग्रह भारतीय जन-जीवन, भारतीय इतिहास और संस्कृति से सम्बन्धित है, इसमें भारत की संस्कृति, साहित्य, कला, धर्म, इतिहास के विषय में जानकारी दी गई है। संग्रह के प्रथम निबन्ध में अशोक के वृक्ष उसके फूलों का प्राचीन भारत में सांस्कृतिक एवं साहित्यिक मूल्य बताया गया है तथा संग्रह का अन्तिम निबन्ध 'भारतीय फलित ज्योतिष है। अशोक का वृक्ष तथा ज्योतिष हमारी संस्कृति के प्रतीक हैं। दोनों का हमारे जीवन में महत्तवपूर्ण स्थान रहा है। अन्य छब्बीस निबन्धों में भी भारतीय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। अतः यह नाम उचित ही है।

अशोक का शाब्दिक अर्थ है शोकहीन व्यक्ति शोकहीन या आनन्दमत्त तभी होता है जब वह निश्चिन्त हो, निस्पृह हो, उसके हृदय और उसकी आत्मा निष्कलुस हो, वह सात्विक विचारों का हो, सन्मार्ग पर चले। इस संकलन के निबन्ध पाठक को बताते हैं कि क्या करने से, किस मार्ग पर चलने से, कौन-सी जीवन-दृष्टि अपनाने से मनुष्य आनन्द प्राप्त कर सकता है।

निबन्ध में अशोक के फूल के विषय में सोचते-सोचते तथा लिखते हुए लेखक भारतीय संस्कृति और मानव प्रवृत्ति पर अपने विचार प्रकट करता है। अन्य निबन्धों 'मेरी जन्मभूमि' 'संस्कृत साहित्य का इतिहास में भी लेखक भारती के गौरवमय अतीत की झाँकी प्रस्तुत करता है और उन जीवन मूल्यों को अपनाने का आग्रह करता है, जिनके द्वारा मानव जाति मंगल और कल्याण के पथ पर चलती हुई अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकती है। इसमें लेखक के वे सुचिंत विचार और सिद्धान्त भी हैं जिनके द्वारा हम आनन्द प्राप्त कर सकते हैं। जैसे परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत और सनातन नियम है चलना और आगे बढ़ना मानव जाति का स्वाभाविक धर्म है। अतः पतन ह्रास और विजय प्राप्त करो। 'संस्कृत साहित्य का इतिहास' नामक निबन्ध में लेखक की अटूट आस्था और आशावादिता झलकती है। विजय यात्रा में युद्ध और विग्रह ने क्षणिक व्यवधान अवश्य डाला है, किन्तु कल्याण पथ की ओर यात्रा रूकी नहीं है। इसी प्रकार वह मानते हैं कि मनुष्य महान है, मनुष्य से बढ़कर कोई और कुछ भी नहीं है। मनुष्य ही साहित्य का लक्ष्य है' में लेखक ने मनुष्य की महानता बताई है तो प्राचीन ऋषियों की वाणी का महत्व 'नया वर्ष आ गया निबन्ध' में बताया गया है। मानव की दुर्दम शक्ति और उसकी जिजीविषा के सम्बन्ध में 'अशोक के फूल' नामक निबन्ध में उतनी स्पष्ट घोषणा है मुझे मानव जाति की दुर्दम निर्मम धारा के हजारों वर्ष का रूप साफ दिखाई दे रहा है। मनुष्य की जीवन शक्ति बड़ी निर्मम है, वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है। न जाने कितने धर्माचारों, विश्वासों, उत्सवों और व्रतों को धोती-बहाती यह जीवन-धारा आगे बढ़ रही है। संघर्षो से मनुष्य ने नई शक्ति पायी है।' इस प्रकार इस निबन्ध संग्रह का नामकरण 'अशोक के फूल सभी दृष्टियों से सार्थक है। वह संग्रह का पहला और सर्वोत्कृष्ट निबन्ध है, उसमें भातीय इतिहास, संस्कृति, सनातन जीवन-मूल्यों की चर्चा की गई है जो अन्य निबन्धों के विषय भी हैं; अतः वह संग्रह के अन्य निबन्धो से जुड़ा है और सभी को श्रृंखलाबद्ध करता है, एकसूत्र में पिरोता है। यह नाम प्रतीकात्मक, कवित्तपूर्ण तो है ही पाठक के मन में जिज्ञासा उत्पन्न करता है कि लेखक इसके द्वारा क्या कहना चाहता है, क्या संदेश देना चाहता है ?

निबन्ध का सार - 'अशोक के फूल' निबन्ध में लेखक ने अशोक वृक्ष और उसके फूलों के माध्यम से भारत के प्राचीन इतिहास, संस्कृति, जीवन-दृष्टि, धर्म-साधनाओं तथा विभिन्न जातियों के विषय में जानकारी दी है। उन्होंने बताया है कि आर्यों का आर्येत्तर जातियों से संघर्ष हुआ, जो जातियाँ गर्वीली थीं और जिन्होंने आर्यों का प्रभुत्व नहीं माना जैसे दैत्य, असुर, राक्षस, दानव उनसे संघर्ष हुआ और जो शान्तिप्रिय थीं जैसे यक्ष- गन्धर्व वे आर्यों से मिल गई। उन्होंने बताया है कि संस्कृत कवि कालिदास से पूर्व अशोक का वृक्ष एवं फूल तो थे, पर सबसे पहले उनको महिमामंडित करने वाले कालिदास ही थे। उनकी रचनाओं में ही इस वृक्ष और उसके फूलों की शोभा, सुकुमारता, सांस्कृतिक महत्व और मानव जीवन में उनका महत्व बताया गया है- "सुन्दरियों के अस्जिनकारी नुपूरों वाले चरणों के मृदु आघात से वह फूलता था, वे अपने कानों में इस फूल के आभूषण बनाकर पहनती थीं, इनसे अपने केशों का शृंगार करती थीं।" भारतीय धर्म-साधना में भी इसका महत्व था। आर्येत्तर जातियों ने वरूण कुबेर, इन्द्र, कामदेव की पूजा- अर्चना में इस पुष्प का प्रयोग किया। लेखक बताता है कि आहुत, साँची, मथुरा आदि में प्राप्त मूर्तियों से पता चलता है कि ये जातियाँ पहाड़ी थीं, संगीत, नृत्य आदि ललित कलाओं में रूचि लेती थीं, पुष्पों से उन्हें विशेष प्रेम था। ये न कृषि प्रधान थीं और न व्यापार वाणिज्य करने वाली जातियाँ थीं। फिर भी धनवान थीं, विलासिता में डूबी हुई थीं। लेखक ने विभिन्न धर्म- साधनाओं और संस्थाओं का भी परिचय दिया है। बौद्ध धर्म, उसकी वज्रयान शाखा, उसमें फैले अनाचार के संकेत दिए हैं। "वज्रयान का अपूर्व धर्म-मार्ग प्रचलित हुआ। त्रिरत्नों में मदन देवता ने आसन पाया। वह एक अजीब आंधी थी। इसमें बौद्ध बंट गये, शैव बह गये, शाक्त बह गये।'

महाभारत काल में सन्तान की इच्छुक स्त्रियाँ वृक्षों के देवताओं के पास जाती थीं। इन वृक्षों में अशोक के वृक्ष को सर्वाधिक महत्व प्राप्त था। माना जाता था कि चैत्र शुक्ल अष्टमी को व्रत रखने और अशोक की आठ पत्तियाँ खाने से स्त्री गर्भवती हो जाती है। तांत्रिक क्रियाओं में सफेद रंग के फूलों का तथा कामवर्द्धन के लिए अशोक के लाल फूलों का प्रयोग होता था। यक्ष और गंधर्व कामदेव की पूजा के लिए अशोक के फूलों का ही प्रयोग करते थे और 'मदनोत्सव' के अवसर पर अशोक के फूलों से ही सजावट होती थी। लेखक बताता है कि इस आरम्भिक युग के बाद, सामन्तवादी व्यवस्था का अन्त होने पर जब भूत-प्रेतों पीरों काली- दुर्गा की पूजा होने लगी तब अशोक का गौरव समाप्त हो गया, उसके पुष्पहीन कोटि के माने जाने लगे। मुसलमानों के शासन काल में यह पुष्प साहित्य से भी निष्कासित कर दिया गया। कवियों तथा अन्य लोगों ने भी अशोक के फूल को भुला दिया। लेखक ने अशोक के फूल की गरिमा तथा उसके पतन का इतिहास बताते हुए मानव जाति के उत्थान - पतन की गाथा प्रस्तुत की है तथा परिवर्तन को प्रकृति का सहज स्वाभाविक धर्म बताते हुए निराश न होने का संदेश दिया है। उनका मानना है कि मनुष्य की जिजीविषा अत्यन्त सशक्त है। शूद्र है केवल मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा। वह गंगा की अबाधित-अनाहत धारा के समान सब कुछ को हजम करने के बाद भी पवित्र है। अतः दुखी होने या चिन्ता करने का कोई कारण नहीं है विपदाओं, संकटों, विषम स्थितियों का साहस और अदम्य विश्वास के साथ सामना करो, संघर्ष नई शक्ति प्रदान करता है। 'अशोक के फूल' हजारों वर्ष बाद भी मुस्करा रहे हैं।

निबन्ध में मुख्यतः पाठकों को यह संदेश दिया गया है -

(1) भारत का अतीत गौरवपूर्ण है, संस्कृति स्वर्णिम है, परम्परा समृद्ध है। हमें उन्हें विस्मृत करना नहीं चाहिए। इन्हंद स्मरण करना, इनका अनुसरण करना एक प्रकार से पितृ ऋण चुकाना है।
(2) सांसारिक स्वार्थी, संकुचित विचारधारा को त्यागकर अहिंसा, मित्रता, उदारता जैसे उदात्त भावों को अपनाओ। इसलिए व्यक्ति, समाज, देश और विश्व का कल्याण होगा।
(3) मनुष्य इस सृष्टि का सर्वोत्तम प्राणी है, मनुष्य से बढ़कर कोई और कुछ नहीं है। मनुष्य ही साहित्य का लक्ष्य है।
(4) मनुष्य की जीने की इच्छां सशक्त है, दुर्दम है। अतः निराशावादी मत बनो।
(5) परिवर्तन तथा विकास सृष्टि के शाश्वत नियम हैं। अतीत को याद कर दुःखी मत हो। अतीत को ध्यान में रखकर वर्तमान का निर्माण करो, सत्य पथ पर चलो, मित्रवत् रहो, सहयोग करो, 'सहना मुनक्तौ का संदेश याद रखो और परिवर्तनों को संघर्ष स्वीकार करो।
(6) संघर्ष, युद्ध, विग्रह से मत डरो, पूरी शक्ति के साथ संघर्ष करो, संघर्ष ही नयी शक्ति प्रदान करता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
  8. प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  10. प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
  11. प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
  13. प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
  14. प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
  17. प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
  19. प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
  22. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
  24. प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
  25. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
  28. प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
  32. प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
  33. प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
  35. अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
  36. प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
  38. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
  39. प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
  40. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  41. प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  42. अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
  43. प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
  44. प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
  45. प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
  46. अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
  47. प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
  48. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
  50. अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
  51. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
  53. प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
  54. अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
  55. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
  57. प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  58. अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
  59. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  60. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  61. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  66. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
  68. प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
  69. अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
  70. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  73. अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
  74. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
  75. प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
  77. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  78. प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
  81. प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
  82. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  84. अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
  85. प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
  87. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
  88. प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  89. अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
  91. प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
  92. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
  93. अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  94. प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
  95. प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
  96. प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
  97. अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
  98. प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
  99. प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
  100. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  101. अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
  102. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
  103. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
  104. अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
  105. प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
  106. प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  107. प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
  108. प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
  109. अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
  110. प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  112. प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  113. अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  114. प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
  115. प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
  116. प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
  117. अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
  118. प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
  119. प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  120. अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
  121. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  122. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  123. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  124. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
  125. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
  127. अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
  128. प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
  129. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
  130. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
  131. अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
  132. प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
  133. प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  135. अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
  136. प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
  137. प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  138. अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
  140. अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
  141. प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
  142. प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  143. अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
  144. प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
  145. प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  146. प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।

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